गुरुवार, 22 जुलाई 2010
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बदनाम हूँ.कहानियाँ लिखता हूँ.आजकल ख़ुद ही कहानी बना हुआ हूँ.एक ठो "वॉर एंड पीस" लिखने की अपनी भी तमन्ना थी मगर जो लिखा सब साला चुतियापे का निकला.यूँ ही24 घंटे बेचैन रहता हूँ.नौकरी के नाम पर सालो से बेगारी.एक सफल इश्क़ की ख़्वाहिश है जो आगे भी शायद ख़्वाहिश ही रहने वाली है.लेखक हूँ इसीलिए सबकी नज़र मे बेकार हूँ.कहने को दो चार पुरस्कार मिले हैं,एक विश्वविद्यालय कहानियो पर रिसर्च भी करा रहा है.एक किताब तुक्के मे छपी है.आगे का कोई भरोसा नही.नाम सब जानते हैं.
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